दिल्ली में गुलाबी सर्दी पड़ रही है, लेकिन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का माहौल....कहीं स्क्रिप्ट याद की जा रही है तो कहीं पेड़ की छांव में कलाकारों की समूह अभिनय कर रहा है। पास ही स्ट्रीट फूड के स्टॉल भी लग रहे हैं। फोल्क आर्टिस्ट भी यहीं जमकर तैयारी कर रहे हैं। दरअसल आज से भारत रंग महोत्सव का शुभारंभ हो गया। 21 फरवरी तक चलने वाले इस महोत्सव में सौ से भी ज्यादा नाटकों का मंचन होगा। नाटक...जो शब्दों के जरिए दिल में उतर जाएंगे। जो कभी हंसाएंगे तो कभी रुलाएंगे। महोत्सव में दिल्ली के प्रोडक्शन समूह भी भाग ले रहे हैं जिनके छह से ज्यादा नाटकों का मंचन होगा। आइए आपको बताते हैं वो कौन से नाटक है-
दिल्ली में कुल 89 नाटकों का मंचन होगा। जिसमें 25 नाटक हिंदी में जबकि 16 बंगाली, 5 कन्नड़, 2 उड़िया, 2 गुजराती, 2 मणिपुरी, 3 अंग्रेजी, 2 असमिया, 2 मलयालम और 1-1 मैथिली-तेलगू-नेपाली और संस्कृत में आयोजित होंगे। 15 विदेशी नाटकों के अतिरिक्त दिल्ली में 8 लोक कलाओं की प्रस्तुतियां भी होंगी।
शीशे के खिलौने
कहानी बहुत ही साधारण लेकिन दिलचस्प है। नायक के दिल में कहीं कवि छिपा बैठा है। लिखने का खूब शौक है। लेकिन परिवार चलाने के लिए वो एक फैक्ट्री में काम करते हैं, उनके एक पैर में दिक्कत है। नायक अपनी मां नफीसा और बहन लुबना की सहायता दिल से करना चाहता है। पारिवारिक दायित्वों को निभाने के दौरान नफीसा एक दिन अजीज से बहन लुबना के लिए अच्छा रिश्ता ढूूंढने को कहती हैं। अजीज एक दिन अमजद नाम के शख्स को घर ले आता है जो लुबना के साथ ही पढ़ाई करता है। लेकिन बातचीत के दौरान अमजद बताता है कि वो एक अन्य लड़की से मोहब्बत करता है। यह कहकर वो चला जाता है। इस बीच अजीज अपनी दिलीइच्छा जाहिर करते हुुए कहता है कि वो मर्चेंट नेवी ज्वाइन करना चाहता है। इसके बाद से ही मां बहुत ही मायूस हो जाती है एवं बेटे के प्रति मोहभंग हो जाता है। लुबना को शीशे के खिलौने रखने का बहुत शौक है, एक दिन उसके खिलौने अजमद तोड़ देता है। इस घटना के बाद अजीज तो घर छोड़कर चला जाता है लेकिन अंदर ही अंदर उसे घर की याद सालती रहती है। जब सालों बाद अजीज अपने घर लौटता है तो बहुत कुछ बदला नजर आता है। इसके बाद जानने के लिए आपको नाटक देखना होगा। नाटक में लुबना द्वारा उठाया गया यह सवाल दिल को छू लेता है कि जैसे लुबना अपने खिलौने की देखभाल करती है वैसे भगवान क्यों नहीं सभी की देखभाल करता है। भगवान क्यों हमें मुश्किल घड़ी में अकेला छोड़ देता है।
नाटक-शीशे के खिलौने
डायरेक्टर-गोविंद सिंह यादव
स्थल-एलटीजी आडिटोरियम।
समय-18 फरवरी, शाम 5 बजकर 30 मिनट।
प्रवेश- आनलाइन बुकिंग द्वारा।
नजदीकी मेट्रो-मंडी हाउस।
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कथा एक कंस की
कंस..इतिहास के प्रचलित महानायकों में से एक। महात्वाकांक्षी शासक ही नहीं असंवेदनशील मनुष्य भी। जब भी कंस का जिक्र होता है तो जेहन में क्रूर, खतरनाक, दैत्य का ही चेहरा सामने आता है। कंस जिसने अपनी बहन के बच्चों तक की हत्या कर दी। लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या कंस हमेशा से ही ऐसा था या परिस्थ्तियों ने उसे ऐसा बनाया। वह कौन से कारण थे, जिनकी वजह से कंस अपनी ही बहन के बच्चों से नफरत करने लगा। ऐसा क्या हुआ कि कंस की भावनाएं मर गई और वह इतिहास का सबसे क्रूर शासक बन बैठा। दया प्रकाश सिन्हा के लिखे इस रिसर्च ड्रामा में कंस, राजा के रूप का बखान करते हुए एक बारगी यह भी कहेगा कि 'पुरुष वहीं है जो हत्या करे। रक्तपात में हर्षित हो। हिंसा की हुंकार में जीवन संगीत ढूंढे। निर्मम, क्रूर, बर्बर, अंधा, बहरा.ऐसा होता है पुरूष।' फ्लैश बैक में चले इस नाटक में कंस के बर्बर होने का कारण तलाशा गया है। कंस को बचपन में वीणा का शौक था पर उसे सख्त शासक बनाने के लिए उसके अभिभावक उसकी कला को दबा देते हैं। कंस का विवाह भी राजनैतिक लाभ के तहत होता है। वहीं, वह निरंकुश शासन के लिए अपने परिवारीजनों को भी कैद करवाता है। कुल मिलाकर नाटक कंस की जिंदगी के एक अन्य पक्ष को दर्शाता है जिसके बारे में बहुत कम ही दिखाया गया है।
नाटक-कथा एक कंस की
डायरेक्टर-दया शंकर प्रकाश सिंहा
स्थल-एलटीजी आडिटोरियम।
समय-2 फरवरी, शाम 5 बजकर 30 मिनट।
प्रवेश- आनलाइन बुकिंग द्वारा।
नजदीकी मेट्रो-मंडी हाउस।
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स्टे येट अ व्हाइल
यह नाटक दरअसल 20वीं सदी के दो महान शख्सियतों महात्मा गांधी और रविंद्र नाथ टैगोर के बीच बातचीत है। यह बातचीत ना केवल भारत के भविष्य का खांका खिचती है बल्कि मानवता के लिए भी उपयोगी। वार्तालाप की यह प्रक्रिया तीव्र भी है और दार्शनिक, आध्यात्मिक, सौंदया्रत्मक , एवं राजनीतिक भी। यह वार्तालाप खतों के जरिए हो रहा है। जिसमें कई मसलों पर एक दूसरे से सहमति और असहमित भी है। लेकिन पूरे वार्तालाप में कहीं भी गुस्सा, क्रोध या एक दूसरे के प्रति नाराजगी जाहिर नहीं होती। इन दोनों के बीच एक दूसरे के प्रति प्यार, सम्मान है। एक दूसरे के विचारों के प्रति सम्मान भी है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए यह नाटक आंख खोलने वाला है। जो ना केवल जीने की एक नई राह दिखाता है बल्कि इन महान हस्तियों की खूबियों को बड़ी बारीकी से दर्शकों के सामने रखता है। नाटक का मंचन अंग्रेजी में होगा।
नाटक-स्टे येट अ व्हाइल
डायरेक्टर-एम के रैना
स्थल-कमानी आडिटोरियम।
समय-14 फरवरी, शाम 7 बजे।
प्रवेश- आनलाइन बुकिंग द्वारा।
नजदीकी मेट्रो-मंडी हाउस।
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शिफा.द हीलिंग नाटक
त्रिपुरारी शर्मा के लिखे इस नाटक को टीकम जोशी ने डायरेक्ट किया है। तीन किरदार- छाया, बरखा और संजीव के इर्द-गिर्द बुनी गई। इसमें दिखाया कि तीनों एचआईवी पॉजिटिव हैं। हालांकि वह अपनी गलती से नहीं बल्कि दूसरों की गलती से इसका शिकार होते हैं। इस बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद उनमें जीने की उम्मीद को दिखाया गया। यानि निराशा में भी आशा के भाव जगाते हुए यह संदेश देता है। टीकम जोशी कहते हैं नाटक प्रेरित करता है। पहला रवि नागर जबकि दूसरा इस तरह की बीमारियों से लड़ने की जद्दोजहद। यह नाटक लोगों के अंदर साहस का भाव जगाएगा। यह नाटक एक खिड़की की तरह है जो समाज के उन मुद्दों पर बहस करता है जिसपर बातचीत करने से लोग कतराते हैं।
नाटक-शिफा द हीलिंग
डायरेक्टर-टीकम जोशी
स्थल-अभिमंच
समय-5 फरवरी, रात 8 बजे।
प्रवेश- आनलाइन बुकिंग द्वारा।
नजदीकी मेट्रो-मंडी हाउस।
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मारफोसिस नाटक
थियेटर जगत की दुनिया का चमकता सितारा है प्रसाद। जिसके सितारे बुलंद है। वह अपने आप को बेस्ट एक्टर मानता है। यह मानने में कोई बुराई नहीं है लेकिन प्रसाद अपने को-एक्टर की कद्र नहीं करता है। सहयोगियों संग बातचीत के दौरान उसका इगो झलकता है। अपने सेक्रेटरी मोहित से बातचीत के दौरान तो कई बार उसका लहजा ऐसा हो जाता है कि दर्शक भी नापसंद करेंगे। वहीं उसका एक जानने वाला भौमिक अपने संघर्ष के दिन काट रहा है। एक दिन भौमिक प्रसाद से मिलने आता है, बातचीत के दौरान तीखीनोंकझोंक होती है। इसी दौरान भौमिक, प्रसाद को नाटक मारफोसिस में अभिनय की चुनौती देता है। हालांकि नाटक के लीड रोल मानस के लिए प्रसाद उपयुक्त नहीं होता है फिर भी वह चुनौती स्वीकार कर लेता है। चुनौती स्वीकार करने के बाद वह निर्देशक से मिलता है । इसके बाद नाटक के लीड रोल की तैयारी के लिए जो अनुशासन, ईमानदारी, त्याग चाहिए जो प्रसाद पूरे समर्पण के साथ सीखता है लेकिन इन सबके बीच बहुत कुछ बदल जाता है। जिसे जानने के लिए आपको नाटक देखना होगा। बापी बोस कहते हैं कि नाटक की कहानी सत्य घटना से प्रेरित है।
नाटक-मारफोसिस
डायरेक्टर-बापी बोस
स्थल-कमानी आडिटोरियम
समय-9 फरवरी, रात 7 बजे।
प्रवेश- आनलाइन बुकिंग द्वारा।
नजदीकी मेट्रो-मंडी हाउस।
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धूर्तसमागम मैथिली
भारत रंग महोत्सव में पहली बार मैथिली नाटक का मंचन होगा। मैथिली के अधिकतर नाटक कृष्ण के इर्द गिर्द बुने गए हैं लेकिन धूर्त समागम के केंद्र बिंदू में एक गुरू एवं शिष्य है। इनका विवाह नहीं हुआ है। दोनो सूरतप्रिया नामक एक जगह जाते हैं जहां गुरु और शिष्य अनंगसेना नामक एक खूबसूरत वेश्या पर मोहित हो जाते हैं। वे दोनों कामवासना से वशीभूत हो कर उस वेश्या को पाने के लिए आपस में हीं झगड़ पड़ते हैं। तत्पश्चात दोनों को अनंगसेना के साथ समस्याओं के निबटारा हेतु मिथिला राज के न्यायाधीश अस्सजाति मिश्र के न्यायालय में जाते हैं लेकिन अस्सजाति मिश्र भी अनंगसेना की सुन्दरता पर मोहित हो जाते हैं। इसके बाद क्या होता है यह नाटक देखकर ही पता चलेगा। नाटक नाटक धर्म और कामान्धता तथा कुत्सित, व्यभिचारी और भ्रष्ट व्यवस्था का पोल खोलने में कामयाब होता है।
नाटक-धूर्त समागम
डायरेक्टर-प्रकाश झा
स्थल-एलटीजी आडिटोरियम
समय-17 फरवरी, शाम साढ़े पांच बजे।
प्रवेश- आनलाइन बुकिंग द्वारा।
नजदीकी मेट्रो-मंडी हाउस।
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आयोजन : भारत रंग महोत्सव
स्थल- कमानी, बहुमुख,श्रीराम सेंटर, एलटीजी, अभिमंच
समय-अलग अलगसमय।
प्रवेश- एनएसडी से भी टिकट मिलेगा एवं आनलाइन बुकिंग सेवा भी उपलब्ध।
नजदीकी मेट्रो-मंडी हाउस।
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