29 मार्च सन 1942...न्यूयार्क टाइम्स में एक खबर छपी। खबर नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित थी। इस खबर ने भारत में भूचाल ला दिया। खबर थी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के मौत की। अखबार ने हवाई दुर्घटना में नेताजी के मौत की खबर छापी थी। फिर क्या था, भारत में शोक की लहर दौड़ पड़ी। इतिहासकार कपिल कहते हैं कि न्यूयार्य टाइम्स ने फर्जी खबर छापी थी। उस समय नेताजी बर्लिन में थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सरीखी कई प्रसिद्ध शख्सियतों ने अफसोस भी जाहिर कर दिया था। दरअसल, न्यूयार्य टाइम्स ने फ्रांस के एक रेडियो के हवाले से खबर चलाई। फ्रांस के रेडियो ने आस्ट्रेलिया के अखबार से खबर ली थी जबकि आस्ट्रेलियाई अखबार ने टोक्यो के एक रेडियो पर खबर प्रसारित होने का हवाला दिया था। इस तरह न्यूज ने हजारों मील का सफर तय कर लिया। नेताजी की जिंदगी से जुड़ी ये दिलचस्प कहानी आप लाल किला परिसर में बने बोस संग्रहालय में देख सकते हैं।
यही नहीं प्रदर्शनी में सन 1941 में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा इंस्ताबुल में अपने जासूसों को भेजा गया पत्र भी प्रदर्शित हैं। जिसमें नेताजी का कत्ल करने का आदेश दिया गया था। बकौल कपिल नेताजी से ब्रिटिश क्यों इतना खौफ खाते थे यह प्रदर्शनी देखने से जाहिर होगा। नेताजी भारतीयों के ब्रिटिश फौज में भर्ती होने के हिमायती थे। इसके पीछे उनका मकसद था कि ऐन वक्त पर भारतीय हमारे लिए उठ खड़े होंगे और अंग्रेज कमजोर हो जाएंगे।
दो मंजिला संग्रहालय भवन में बोस की जिंदगी को तीन हिस्सों में दर्शकों के सामने रखने की कोशिश की गई है। मसलन, भूतल पर बोस के प्रारंभिक जीवन, राष्ट्रवाद के बारे में बताया गया है। इसी तल पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा उपयोग में लायी जाने वाली कुर्सी, तलवार और म्यान समेत आजाद हिंद फौज के जवानों के परिचय पत्र, रुपये और सिक्के भी देखे जा सकते हैं। एक राष्ट्रवादी का जन्म, विद्यालय के दिन, राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी संबंध समेत सन 1914 में कालेज के दिनों में गर्मी की छुट्टियों में एक मित्र के साथ चुपचाप घर से तीर्थ यात्रा के लिए निकलने का प्रसंग भी बकायदा चित्रों एवं स्केच के जरिए दर्शाया गया है। संग्रहालय की पहली मंजिल पर नेताजी के दो बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने, कलकत्ता से बर्लिन की यात्रा, जर्मनी प्रवास, आजाद हिंद रेडियो, दक्षिण पूर्व एशिया समेत भारतीय परिदृश्य एवं आजाद हिंद फौज के बारे में विस्तृत जानकारी है। 1929 लाहौर कांग्रेस, 1930-31 सविनय अवज्ञा के वर्ष के दौरान की जानकारी भी देखी जा सकती है। द्वितीय तल पर आजाद हिंद सरकार, आजाद हिंद के गीत, यातनाएं और बोस खो गए शीर्षक से दस्तावेज प्रदर्शित हैं। लाल किले में मुकदमा संबंधी दस्तावेज भी यहां प्रदर्शित हैं। 5 नवंबर 1945 को मुकदमा शुरू हुआ था। यह आठ माह तक चला था। इतिहासकार कपिल कहते हैं कि मुकदमे से पहले 27 जवानों केा मारा गया था। सैकड़ों जवानों को ब्रितानिया हुकूमत का टार्चर सहना पड़ा था।
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