Monday, January 21, 2019

मंडी हाउस मेट्रो पर मदनपुर खादर की लड़कियों का आना-जाना

गड्ढे वाली सड़के। संकरी गलियां। बिजली के लटकते तारों संग सिविक समस्याओं संग झूलती जिंदगी। जो झांकती हैं बालकनी से कभी सब्जी वाले की आवाज सुनकर तो कभी फेरीवाले की चिल्लाहट सुनकर। बारिश में डूबी सड़के, गलियों में मुंह चिढ़ाती खड़ी स्ट्रीट लाइटें। मदनपुर खादर में सुविधाओं के अभाव में गुजरती जिंदगी में महिलाएं अपने आप को ढाल चुकी है। ये ना केवल इन गलियों की दहलीज लांघती है बल्कि अपने और अपने परिवार का पालन पोषण भी करती है। यहां रहने वाली महिलाओं को रोजमर्रा की जिंदगी में पेश आती मुश्किलों, अभावों समेत चंद खुशनुमा पलों को समेटने की ही कोशिश का नाम है आना-जाना। मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन परिसर में आना जाना की फोटो प्रदर्शनी लगी हुई है। ये फोटो मदनपुर खादर की महिलाओं द्वारा खींचकर, गैर सरकारी संगठन को प्रदान किए गए हैं। दरअसल, प्रदर्शनी यूके के आर्ट एंड हयूमिनिटी रिसर्च काउंसिल द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त है। जिसमें स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर एवं संगठन जागोरी भी शामिल है। प्रदर्शनी इन महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी का आइना है जो सुबह बसों में धक्के खाती हुई शहर में दाखिल होती हैं और शाम में थकी हारी पहुंचती है।
संगठन ने छह महीने की अवधि में इन महिलाओं द्वारा बनाए गए सहभागिता मानचित्र, क्लिक की गई तस्वीरों, वीडियो एवं वाट्सएप पर किए गए मैसेज, डायरी का उपयोग किया गया है। इन सभी माध्यमों के बहाने महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी एवं इलाके की वास्तविक स्थिति से रूबरू कराती है। प्रदर्शनी मुख्य रूप से पांच भागों में विभाजित है।


विषय
विषय शीर्षक के तहत सबसे पहले डेट संग्रह संबंधी प्रदर्शनी है। जिसमें बताया गया है कि किस तरह प्रतिभागियों एवं शोधकर्ताओं ने वाटसअप गु्रप बनाया। जिसमें यहां की महिलाओं को शामिल किया गया। ये महिलाएं प्रतिदिन अपडेट करती थी। फोटो, मैसेज और दैनिक डायरी लिखती थी। यही नहीं इन अपडेट के आधार पर संगठन विकिपीडिया एडिटर ए थॉन करवाया। इसमें महिलाओं के द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर मदनपुर खादर पर एक विकी लेख भी तैयार किया गया। इसी तरह सेल्फी वर्कशाप का भी आयोजन किया गया। जिसमें महिलाओं द्वारा ली गई सेल्फी की प्रकृति एवं उसके उद्देश्य पर भी चर्चा हुई। यही नहीं महिलाओं ने एक गाना भी तैयार किया जो उनके रोजमर्रा की जिंदगी के संघर्ष की कहानी बयां करता है।

आना-जाना क्यों?
प्रदर्शनी का नाम मेट्रो यात्रियों के बीच खासा चर्चा का विषय बना रहा। प्रदर्शनी से जुड़े पदाधिकारी बताते हैं कि आना-जाना दरअसल दिल्ली की प्रकृति का द्योतक है। स्वतंत्रता के बाद से ही दिल्ली में उद्योग धंधे, कारखाने की बढ़ोतरी हुई। लिहाजा, काम धंधे की तलाश में पड़ोसी राज्यों के गांवों से लाखों लोग दिल्ली आए। परिणामस्वरूप झोपड़पट्टी, बस्तियों की तादात में इजाफा हो गया। इसी तरह जाना की परिभाषा कुछ यूं समझी जा सकती है। जब बस्तियों की संख्या बढ़ी तो मदनपुर जैसी रिसेटलमेंट कालोनियों में लोगों को शिफ्ट किया गया। खादर में रहने वाले पं बंगाल, यूपी, बिहार, राजस्थान के निवासी है जो काम धंधे की तलाश में दिल्ली आए थे। वे मुख्य रूप से कम वेतन वाली नौकरियां मसलन चपरासी, ड्राइवर, घरेलू कामगार, सुरक्षा गार्ड, रैग पिकर, विक्रेता, औद्योगिक इलाकों में श्रमिक हैं।

होम-फोन और सिटी
स्मार्ट फोन ने घर घर दस्तक दे दी है। लोगों की जिंदगी जेब में रखे फोन ने बदल दी है। मदनपुर खादर में रहने वालों की जिंदगी पर भी इसका असर पड़ा है लेकिन अभी भी यहां नेटवर्क की समस्या बनी हुई है। इसे प्रदर्शनी में बड़े ही खूबसूरत ढंग से दर्शाया गया है। जबकि शहर शीर्षक के अंतर्गत यौन उत्पीडऩ के मसलों पर महिलाओं ने चुप्पी तोड़ी है। प्रदर्शनी में चित्रों, कैरिकेचर के जरिए यह बताया गया है कि महिलाएं इन खतरों से अलग अलग तरीकों से निपटती है। जैसे कभी पुलिस हेल्पलाइन पर कॉल करके तो कभी दोस्तों के साथ रहकर। कभी अकेले होने पर नजर अंदाज करना या मदद के लिए कॉल करने के बहाने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना शामिल है। सेफ्टी पिन मोबाइल एप के जरिए सेफ्टी सर्वे का चित्र भी प्रदर्शनी में शामिल है। जहां सेफ और अनसेफ जगहें चिन्हित की गई है। इसमें एटीएम मार्केट, डी ब्लॉक, गर्वमेंट टॉयलेट, चौराहा पार्क, गर्वमेंट स्कूल एरिया जैसी कई अन्य जगहों को महिलाओं ने अनसेफ बताया है।

खादर की लड़कियां
खादर की लड़कियां तमाम असुविधाओं के बावजूद अपने सपनों को कैद नहीं रखती है। अपने हौसले की उड़ान को वो और उंचा करने में जुटी है। वो मेहनत से सफलता के पायदान चढ़ रही है। यह खादर की लड़कियां शीर्षक से भी जाहिर होता है। जिसमें लड़कियां अपनी भावनाओं का इजहार कविता से करती है। एक लड़की ने लिखा कि-
हम खादर की लड़कियां
शहर में रहती हैं दिन रात
हम खादर की लड़कियां
सुनो हमारी बात।।
वहीं एक लड़की ने लिखा है कि यह शहर सिर्फ चंद लोगों का नहीं है। यह शहर हमारी मेहनत से सींचा गया है। यह हम सब का शहर है। लिखती है-
मेरे साथ कहो एक बार
यह शहर हमारा आपका
नहीं किसी के बाप का।।
जबकि एक अन्य युवती ने बदहाल व्यवस्था पर चोट करती चंद पक्तियां लिखी।
नदी तो दूर, नाली भी नहीं
पहाड़ तो दूर, कूड़े के ढेर मिलेंगे
रास्तों में हो लाइट
ना हो कोई फाइट।।
लेकिन इन लड़कियों की हिम्मत देखने लायक है। इसका इजहार इनकी कविताओं से ही होता है। एक युवती लिखती है कि -
मैं हूं अलर्ट
मैं हूं होशियार
मेरी हिम्मत है बेमिसाल।।
जबकि एक लड़की ने अपनी व्यथा कुछ इस कदर बयां किया--
क्यों समाज ने मुझको दबाया है
बिना खुद को सुधारे
मुझे घर में बिठाया है।।

वाट्सएप डायरी
प्रदर्शनी में वाट्सएप डायरी उत्सुकता भरी है। दरअसल, वाटसएप पर महिलाओं द्वारा शेयर की गई बारिश संबंधी तस्वीरों को इस श्रेणी के तहत प्रदर्शित किया गया है। इसमें बारिश के बाद जलमग्न सड़कों को दर्शाया गया है। किस तरह लोगों को परेशानी होती है, बच्चे इनमें खेलते हैं। गाडिय़ां आधी डूब जाती है एवं नालियों का पानी कई जगह घरों में दाखिल होने लगता है।

आयोजन-आना-जाना
स्थल-मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन

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